पालघर-बोईसर | जब कोई हम पर पीड़ा आए तो पहले भगवान को फिर करते है डॉक्टर को याद,जब इस विषय पर हमने लोगो के मन टटोले तो सामने आई हैरान कर देने वाली जानकारी

by | May 17, 2023 | पालघर, महाराष्ट्र, वसई विरार

पालघर : कहते हैं जब कोई बीमार हो या किसी पीड़ा से ग्रस्त हो तो पहले भगवान का नाम मुंह से निकलता है, फिर डॉक्टर में ही उसे भगवान दिखता है। अगर आपकी मुश्किल के समय एक अच्छा डॉक्टर मिल जाए और प्यार और मानवता की भावना से आपकी देखभाल करे तो उससे ज्यादा कुछ भी अच्छा नहीं।

समाज ने डॉक्टर को दिया भगवान का दर्जा

हमारे समाज में डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है, क्योंकि वही एक ऐसा शख्स है, जो किसी को मौत के मुंह में जाने से बचा सकता है। तिल-तिल मरते किसी इंसान को जिंदगी दे सकता है और खोई हुई उम्मीदों को जीता-जागता उत्साह दे सकता है। जाहिर सी बात है कि धरती पर एक डॉक्टर ही साक्षात ईश्वर का काम करता है और इसके लिए उनके प्रति जितना कृतज्ञ हुआ जाए कम ही होगा। डॉक्टर्स को प्राप्त इस देव पद के सम्मान में 1 जुलाई को हम डॉक्टर्स डे भी मनाते हैं।
पर कभी-कभी अंतरमन से निकलते इस पवित्र भाव बनाए रखना भी बड़ा मुश्किल होता है। ऐसे कई उदाहरण है, जो न सिर्फ डॉक्टर जैसे सर्वोपरि पेशे को बार-बार कलंकित करता है बल्कि डॉक्टर्स पर आम जनता के सदियों से जमे हुए विश्वास को एक सेकंड में झकझोर देता है, और उसकी जगह शक और सवालों को दे देता है। हेडलाइंस18 ने पालघर-बोईसर क्षेत्र में दर्जनों लोगों से इस विषय पर राय ली,उनके अनुभव को जानने की कोशिश की उनसे निकलकर जो बातें सामने आई वो वाकई हैरान कर देने वाली है । सुविधा से ज्यादा समस्या इतनी ज्यादा है कि हम सभी लोगो की राय नही लिख सकते पर कुछ महत्वपूर्ण बातें आपके सामने रख रहे है ।

क्या पालघर-बोईसर क्षेत्र में निजी अस्पताल के डॉक्टर भगवान वाला फर्ज निभाते है या व्यवसाय वाला?

बोईसर निवासी आशीष ने बताया कि पालघर-बोईसर क्षेत्र में, जो कि एक दूरस्थ और आइसोलेटेड क्षेत्र है, यहा ना तो कोई विजिलेंस टीम आती है और ना ही जिला स्तर पर कोई मेडिकल टीम किसी तरह की जांच करती है। यदि हम डॉक्टर को भगवान वाला दर्जा दे भी देते तो शायद इस क्षेत्र के लिए यह एक अतिशयोक्ति होगी क्योंकि यहाँ के कोई भी बड़े डॉक्टर्स हो, चाहे वो किसी भी हॉस्पिटल के हो, हर कोई अपने अपने अस्पतालों के रेवेन्यू को लेकर ही गंभीर है, उन्हें किसी के आर्थिक कठिन्नाइयों से कोई सरोकार नहीं और लगभग लगभग सभी की सोच इमोशनल से ज्यादा प्रैक्टिकल है।
वही विकास ने बताया कि मैं हॉस्पिटलों पर आरोप नही लगा रहा हूं बल्कि यह सच है कि हॉस्पिटलों के बिलों में कोई नाप तोल नही होता है व न इस पर सरकार का भी कोई कंट्रोल है,जिसको लेकर हम शिकायत कर सके । हमे भी पता है कि किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में डॉक्टर,नर्स,बिल्डिंग समेत कई खर्चे होते है पर कुछ तो लिमिट होनी चाहिए पर ऐसा कुछ भी नही है सभी अपने मर्जी के मालिक है व सुविधाओ के अभाव में हमारे पास उनके अलावा कोई सहारा भी नही है ।

क्या निजी अस्पतालों के डॉक्टर या मालिक गरीब मरीज की मजबूरी पर तरस खाते है या नही?

इस सवाल के जवाब में लोगो ने बताया कि बोईसर और पालघर जैसे क्षेत्र में ऐसा कोई अस्पताल नही जो अपने निजी हितों के बारे में ना सोचे और इसका सबसे बड़ा कारण है यहां किसी बड़े NGO या ट्रस्ट संस्थाओं का ना होना। चाहे एक एक करके बोईसर क्षेत्र के दर्जनों निजी हॉस्पिटलों को गिन लो, सभी एक तरह के कॉरपोरेट हाउस जैसे चल रहे है जिनका उद्देश्य ही सिर्फ नेट वर्थ बढ़ना है। गरीबों या आर्थिक रूप से कमजोर लोगो के लिए मेडिकल सुविधाएं आज भारत में सरल हो चुकी है लेकिन दूरस्थ शहर जैसे पालघर बोईसर में सरकारी तंत्र का विफल होना ही अस्पतालों के लूट का बड़ा कारण है । वही तारापुर औद्योगिक क्षेत्र के एक कामगार ने बताया कि हमारे पास निजी अस्पतालों के अलावा कोई सहारा भी तो नही है । अगर भगवान न करे ऐसी कोई नोबत आए तो भले सबकुछ गिरवी रखना पड़े या बेचना पड़े पर जान बचानी होगी तो हमे इलाज कराना ही होगा ।

क्या आपके साथ हॉस्पिटल को लेकर ऐसा अनुभव जिसमे आपको समस्या का सामना करना पड़ा हो?

इस पर लोगो ने कई निजी हॉस्पिटलों को लेकर अपने दर्द बयां किये । किसी ने भारी भरकम बिल से लेकर मिलने वाली सुविधाओं को लेकर तो किसी ने तो इतना तक कह डाला कि भगवान कभी दोबारा इन हॉस्पिटलों का सामना न करवाए । बोईसर जैसे शहर में आज भी एक भी MRI सेंटर नही है, आज भी यहां के ऑर्थोपेडिक डाक्टर MRI के लिए मरीजों को विरार, मीरा रोड, या वापी वलसाड भेजते है। 100 % एक्यूरेसी का एमआरआई यहां है ही नही और शायद इस पर किसी का ध्यान कभी नहीं गया, आशीष पांडेय ने दर्द बयां करते हुए बताया की जब मुझे अपने छोटे बच्चे के पैर का MRI करवाने के लिए मुंबई जाना पड़ा और इसके लिए मैंने व्यक्तिगत तौर पर पालघर CMO और DMO को MRI सेंटर को रिकमेंड करने हेतु पत्र भी लिखा है, इसके अलावा एक आरटीआई भी दायर की है । वही बोईसर निवासी एक विधवा महिला ने अपना अनुभव बताया कि कुछ महीने पूर्व मेरे बेटे के पेट मे अचानक दर्द होने लगा तो हम उसे तुरंत एक प्राइवेट हॉस्पिटल लेकर गए । वहां पर जांच करके बताया कि इसके पेट मे बड़ा स्टोन है इसका ऑपरेशन करना पड़ेगा,जिसका खर्चा इतना बताया कि मेरे बस के बाहर था पर बेटे का दर्द देखा नही जा रहा था तो फिर उसको मैं तुरंत दूसरे प्राइवेट हॉस्पिटल में लेकर गई वहां पर बच्चे को एडमिट करवाया व डॉक्टर ने बताया कि पेट मे इंफेक्शन है,दो दिन के इलाज के बाद हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई । अब इनकी बातों से हमारे सामने कई सवाल पैदा होते है जिसका जवाब हमारे पास में भी नही है । कुछ लोगो ने हमे निजी अस्पतालों के बिल की कॉपी भी भेजी है जिसे देखकर हम भी हैरान है ।

इस विषय पर हमारी नजर बनी हुई है,यह दूसरा पार्ट आपके समक्ष रखा है,आगे और भी जानकारी आपके समक्ष जल्द ही अगले भाग में रखी जायेगी ।

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