महाराष्ट्र में पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत कर दी थी. इसके बाद उद्धव सरकार गिर गई थी. शिंदे ने शिवसेना के बागी विधायकों के साथ बीजेपी के समर्थन में सरकार बनाई थी. इसके बाद उद्धव गुट ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी. उधर, शिंदे गुट की ओर से भी याचिका दाखिल की गई थी. अब 11 महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे बड़ी बेंच के पास भेज दिया.
शिवसेना के 16 बागी विधायकों के निलंबन पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला आ गया है. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला पढ़ा. उन्होंने कहा कि 2016 का नबाम रेबिया मामला, जिसमें कहा गया था कि स्पीकर को अयोग्य ठहराने की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है, जब उनके निष्कासन का प्रस्ताव लंबित है, तो इसमें एक बड़ी पीठ के संदर्भ की आवश्यकता है. इसे बड़ी बेंच का पास भेजा जाना चाहिए. स्पीकर के खिलाफ अगर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, तो क्या वह विधायकों की अयोग्यता की अर्जी का निपटारा कर सकते हैं? अब इस मुद्दे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ करेगी.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राज्यपाल के पास विधानसभा में फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए कोई वस्तुनिष्ठ सामग्री नहीं थी. फ्लोर टेस्ट को किसी राजनीतिक दल के अंदरूनी विवाद या मतभेद को हल करने के लिए एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंत: पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है.