धर्मनगरी बोईसर में धूमधाम से होगा हिंदू नववर्ष का स्वागत, गुड़ी पड़वा पर होगा भव्य कार्यक्रम का आयोजन

by | Mar 17, 2023 | पालघर, महाराष्ट्र

बोईसर में सकल हिन्दू समाज द्वारा हिन्दू धर्म के सभी समाज को साथ लेकर भव्य गुड़ी पड़वा कार्यक्रम का आयोजन रखा गया है । इस कार्यक्रम को सफल बनाने में पूरी टीम जुट गई है .हिन्दू धर्म के गुड़ी पड़वा का विशेष महत्व है,बोईसर शहर में यह यह आयोजन पहली बार होने जा रहा है, जिसको लेकर लोगो मे काफी उत्साह का माहौल है ।

कार्यक्रम दिन,स्थल व आयोजक

यह गुड़ी पड़वा महोत्सव 22 मार्च को बोईसर के सर्कस ग्राउंड में हिंदू नववर्ष स्वागत समिति द्वारा आयोजित किया जाएगा ।

हिन्दू नववर्ष, गुड़ी पड़वा पर्व कार्यक्रम की रूपरेखा

सर्वप्रथम सुबह 8.30 बजे गुड़ी खड़ी कर उसकी पूजा अर्चना की जाएगी, शिव काल के अस्त्र-शस्त्र एवं सिक्कों की प्रदर्शनी का शुभारंभ प्रातः 9.00 बजे से शाम तक रहेगी,शाम को 4 बजे भव्य ढोल और ताशा बैंड वाजन किया जाएगा । शाम 5 बजे वारकरी संप्रदाय अखाड़ा का कार्यक्रम रखा गया है,6 बजे महिलाओं के लिए हल्दी कुंकू समारोह आयोजन के बाद 6:30 को सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा, शाम 7 बजे से हिंदू नववर्ष व्याख्यान संध्या शुरू होगा ।

गुड़ी पड़वा पर्व का महत्व

सनातन धर्म में गुड़ी पड़वा के पर्व का खास महत्व है। नववर्ष की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है। इस दिन गुड़ी पड़वा का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार नव वर्ष की शुरुआत भी इसी दिन होती है। मान्यता है कि गुड़ी को घर में लगाने से बुरी शक्तियां दूर रहती हैं। वहीं, सुख-समृद्धि आती है। गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घर की विशेष रूप से साफ-सफाई करते हैं। खुशनुमा और पवित्र बनाने के लिए उसे सजाते हैं। गुड़ी पड़वा से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है।
इस पर्व को भारत के अलग -अलग स्थानों में अलग नामों से जाना जाता है। भारत के अलग-अलग प्रदेशों में इसे उगादी, छेती चांद और युगादी जैसे कई नामों से जाना जाता है। इस दिन, घरों को स्वस्तिक से सजाया जाता है, जो हिंदू धर्म में सबसे शक्तिशाली प्रतीकों में से एक है। यह स्वास्तिक हल्दी और सिंदूर से बनाया जाता है। इस दिन महिलाएं प्रवेश द्वार को कई अन्य तरीकों से सजाती हैं और रंगोली बनाती हैं।
ऐसा माना जाता है कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। एक मान्यता के अनुसार सतयुग की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी। वहीं मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध में विजय से भी यह पर्व जुड़ा हुआ है। उनके युद्ध में विजयी होने के बाद से ही गुड़ी पड़वा के त्यौहार को भव्यता से मनाया जाने लगा। गुड़ी पड़वा को रबी की फसलों की कटाई का प्रतीक भी माना जाता है।

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