कुंभकर्णी नींद में प्रशासन,खतरे में मासूमों का जीवन,पालघर जिले में खटारा वाहनों से बच्चे पहुंचाएं जा रहे स्कूल

by | Mar 15, 2023 | देश/विदेश, पालघर, महाराष्ट्र

हेडलाइंस 18

बच्चों को बेहतर शिक्षा देने व अन्य तामझाम बनाकर स्कूल संचालक लोगों से फीस आदि के नाम पर सालाना तगड़ी वसूली तो कर रहे लेकिन सबसे जरूरी मुद्दा छात्रों की सुरक्षा को लेकर यहां व्यवस्था हवा-हवाई है।
जिले में निजी स्कूलों को खोलने की होड़ सी मची है। लेकिन कई स्कूलों में चलने वाले वाहनों की हालत काफी खस्ता है। कई ऐसी बसें और मैजिक हैं,जो काफी जर्जर हालत में हैं अथवा उनकी मियाद पूरी हो गई है। बावजूद इन बसों का उपयोग स्कूली बच्चों को लाने-ले जाने में किया जा रहा है। मियाद पूरी कर चुके जर्जर बसों से हर समय हादसा होने की संभावना बनी रहती है। इन खटारा वाहनों पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस की है, लेकिन वे दोनों कुंभकर्णी नींद में सोए हुए है। कार्यवाही न होने के चलते खटारा बसें स्कूल के बच्चो को अभी भी सड़कों पर लेकर दौड़ रही हैं। स्कूलों के बड़े-बड़े भवन तो खड़े कर हो जा रहे है, लेकिन इसमें पढ़ने के लिए आने वाले छात्र कितने सुरक्षित हैं इस पर किसी का कोई ध्यान ही नहीं है। जिन छात्रों के सहारे शिक्षण संस्थान सालाना लाखों रुपये कमा रहे वो इनकी सुरक्षा को ही ताख पर रख देते हैं। बच्चों को स्कूल से लाने व ले जाने के लिए लगाए जाने वाले वाहनों का यहां कोई मानक ही नहीं है। पालघर,बोईसर,वसई,विरार जैसे शहरी इलाकों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में
निजी स्कूल प्रबंधनों की मनमानी के चलते खटारा बसों को लाकर स्कूल बस के तौर पर चलाने का धंधा खूब फलफूल रहा है। मुनाफाखोरी करने वाले बस ऑपरेटर बगैर परमिट ही इन बसों को शहर के नामी स्कूलों में अटैच कर हर महीने लाखों रुपए किराया वसूल रहे हैं।
फिटनेस खराब होने की वजह से इन बसों के पुर्जें कभी भी काम करना बंद कर देते हैं जिसके चलते जानलेवा दुर्घटनाएं सामने आती हैं।

नियमों की धज्जियां उड़ाने में नामी स्कूल भी नही है पीछे

कुछ स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो छोटे बड़े कई स्कूल है, जिनमें स्कूली वाहन बिना मानक के ही संचालित हो रहे हैं। इनमे कुछ नामी स्कूल भी शामिल है। वाहनों में कहीं जाली नहीं लगी है तो कहीं खिड़की व शीशे तक टूटे पड़े हैं। इस तरह की स्थिति में यहां अभिभावक भी जान हथेली पर रखकर ही अपने बच्चों को स्कूल भेजने का काम करते हैं।

वाहनों में ठूस ठूस कर भरे जाते है बच्चे

मानकों की जांच व अन्य पहलुओं को देखने की जिसे जिम्मेदारी मिली है वो ही उदासीन बने रहते हैं। जिले के कुछ स्कूलों को छोड़ दें तो लगभग सभी जगह संचालित होने वाले स्कूल वाहनों में बच्चे ठूंस-ठूंस कर ही भरे जाते हैं। ऐसे में यहां कब कहां क्या हो जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है।
स्कूली वाहनों के नाम पर परिवहन विभाग में जो वाहन पंजीकृत हैं वह ना के बराबर है।
जिले में छोटे-बड़े निजी स्कूलों की संख्या ही सैकड़ों है तो इनमें वाहनों की संख्या कितनी होगी यह खुद भी समझा जा सकता है। जिससे यहां स्कूलों में जर्जर व खटारा किस्म के वाहनों से ही बच्चे ढोए जाते हैं। बड़ी बात तो है कि मनाही के बाद भी यहां तिपहिया वाहनों से भी बच्चों को लटका कर ढोया जाता है।

वाहनों की जांच कम दिखावा ज्यादा

कभी-कभार दिखावा के लिए ऐसे वाहनों की जांच होती है। लेकिन कार्यवाही के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती है। जांच के नाम पर दिखावा ज्यादा होता है। इनका न तो कोई ड्रेस होता है और न कोई मानक की पूछ ही की जाती है।

ये हैं फिटनेस के मानक

  • ब्रेक लाइट और टर्न लाइट चालू हालत में हो।
  • प्रेशर हार्न मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार हो।
  • मेक और मॉडल में बदलाव नहीं हो।
  • अगले टायर में ग्रिप होना चाहिए। रिमोल्डिंग न हो।
  • टूल किट, प्राथमिक उपचार बॉक्स व अग्निशामक यंत्र हो।
  • बच्चे खिड़की से बाहर सिर न निकालें इसके लिए लोहे की राड या जाली लगी हो।
  • गाड़ी के कांच में ही फिटनेस की तारीख, रूट की जानकारी अंकित हो।
  • बस जिस स्कूल में चलती हो उसका नाम, फोन नंबर अंकित हो।

जिले भर के स्कूल संचालकों की जल्द ही एक बैठक आयोजित की जाएगी। स्कूल बसों में चलने वाले स्टॉप के ड्रेस सहित अन्य नियमों का सख्ती से पालन करवाया जायेगा। फिटनेश और मानक पर खरे न उतरने वाले स्कूलों वाहनों को जप्त किया जाएगा।

आसिफ बेग/सहायक पुलिस निरीक्षक ट्रैफिक पुलिस पालघर

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