पालघर | फरवरी में ही पानी की किल्लत शुरू, अप्रैल मई में मच सकती है त्राहि त्राहि

by | Mar 8, 2023 | पालघर, महाराष्ट्र

पालघर में चढ़ते तापमान के साथ ही ग्रामीण इलाकों में पानी की किल्लत भी शुरू हो गई है। फरवरी महीने में ही यहां पानी सूखने लगा है। इसलिए लोगों को घर से दूर पानी लेने जाना पड़ रहा है। गर्मी के शुरू होते ही पालघर के मोखाड़ा तालुका के आदिवासियों के गांव में पानी की भारी किल्लत शुरू हो गई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि फरवरी में यह हाल है तो अप्रैल, मई में क्या होगा। पालघर के ग्रामीण इलाकों में पेयजल की किल्लत सभी चुनावों में एक बड़ा मुद्दा रहा है। यहां के ग्रामीणों को पानी व विकास कार्यों के सपने दिखाकर राजनीतिक पार्टियों ने वोट तो हासिल किए लेकिन हर बार वे अपने वादे भूल गए। आजादी के 75 साल बाद भी लोगों को पीने के साफ पानी की दरकार है, वो इस बात की आस लगाए बैठे हैं, देर सवेर सही कभी तो सरकारी टैंकर उनकी दहलीज के सामने पानी लेकर पहुंचेगा, जिससे वो परिवार की जरूरत का पानी जुटा सकेंगे। इन दिनों पानी का स्रोत नीचे जाने से मोखाडा के दस
गांवों में चार टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है। तीन महीने में यहां पेयजल संकट और गंभीर होगा।
अगले कुछ महीनों में सैकड़ों गांवों में पानी की समस्या होगी और 60 से अधिक गांवों को टैंकरों से पानी की आपूर्ति करनी होगी।

पानी के लिए बच्चे और महिलाएं भटकने को मजबूर

चास , आसे , पाथर्डी , नाशेरा , स्वामीनगर , किनस्ते , निलमाती ग्रामपंचायत के दस गांवों में टैंकर से पानी की सप्लाई की जा रही है। जिले के जव्हार व मोखाडा तालुका में सालों से पीने के पानी की समस्या बनी हुई है। गर्मियों में यह बहुत बढ़ जाती है, लेकिन अभी से ही पानी की किल्लत शुरू हो गई है। प्रशासन ने लोगों तक टैंकर से पानी पहुंचाने का काम शुरू कर दिया है। मोखाडा तालुका में छोटे-बड़े 93 गांव हैं। यहां लगभग 50 हजार से ज्यादा की आबादी है। मार्च से जून तक यहां रोजाना 80 से 90 टैंकर पानी लोगों तक पहुंचाया जाता है। पर, टैंकरों का पानी आबादी के लिहाज से बहुत कम पड़ता है। बता दें कि यहां के लोगों के लिए नदी, कुएं, झरने व तालाब ही पानी के स्रोत हैं। फिर भी बच्चो और महिलाओं को पानी के लिए कई कई किलोमीटर तक पैदल भटकना पड़ता है।
ऐसे में गांव के बच्चे महिलाएं और पुरुष हाथ में पानी के बर्तन उठा निकल पड़ते हैं। कुछ लोग बैलगाड़ी का इस्तेमाल करते हैं, तो कुछ लोग बर्तन सायकल के पीछे बांध लेते हैं। आदिवासियों कहना है कि मोखाड़ा और जव्हार तालुका में नदिया है। पेयजल के लिए कई डैम है जिनका पानी पीने के लिए महानगरों में जाता है। लेकिन हम सरकार की इच्छाशक्ति के अभाव में डैम और नदियों के बगल के रहकर भी पानी के लिए दर दर भटक रहे है।

कागजों तक सीमित है पेयजल योजना

केंद्र सरकार की जल जीवन मिशन की हर घर जल, हर घर नल योजना के तहत गांवों में शुद्ध पेयजल
मुहैया कराने के तमाम दावे किए जाते है,लेकिन पालघर के आदिवासी इलाकों में करोड़ों खर्च के बाद भी पेयजल लोगों को अब तक नसीब नही हुआ है। पार्वती कहती है, कि आजादी के अमृत महोत्सव में आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों को अगर पेयजल तक के लिए भटकना पड़ रहा है,तो विकास की हकीकत का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज भी यहां के लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन जीने को मजबूर है।

जल आपूर्ति विभाग के ठेकेदारों व अधिकारियों, कर्मचारियों की मिलीभगत से गांवों में चल रही जलापूर्ति योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। जिससे जमीन पर काम ही नहीं होता है।आदिवासियों को प्यास बुझाने के लिए कई किमी तक आज भी भटकना पड़ता है। जबकि पेयजल की योजनाएं वर्षो से यहां लटकी पड़ी है।

प्रदीप वाघ – उपाध्यक्ष – मोखाड़ा पंचायत समिति

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