हेडलाइंस 18
पालघर.जिले के तटीय क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कछुए जख्मी अवस्था मे पाए जाते हैं। जिनके उपचार के लिए २०१२ में डहाणू में वनविभाग की देखरेख में कछुओं के एक उपचार केंद्र की स्थापना की गई थी। अधिकारियों के अनुसार यह भारत में कछुओं का पहला उपचार केंद्र ( रेस्क्यू सेंटर) है। इस उपचार केंद्र में ५ जख्मी हुए कछुओं का उपचार जारी है। और अब तक करीब ५०० कछुओं का उपचार करने के बाद उन्हें सुरक्षित समुंदर मे छोड़ दिया गया है। समुंदर के कारण यह क्षेत्र कछुओं के लिये आदर्श प्रजनन क्षेत्र है। यहां के तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले कछुए आकार में काफी बड़े होते हैं। और लगभग 15 किलोग्राम तक के यहां कछुए पाए जाते हैं। लेकिन समुंदर में मानव निर्मित कचरे और कई कारणों से कछुए अक्सर जख्मी हो जाते है। जिन्हें इस उपचार केंद्र में लाया जाता है। यहां कछुओ के एक्सरे और लेजर तकनीकी से आपरेशन कर उन्हे अनुभवी डॉक्टरों की देखरेख में एक नई जिंदगी दी जाती है। कछुओं के इस उपचार केंद्र में कई पानी की टंकियां बनाई गई हैं। प्रत्येक टंकी समुचित रूप से चौड़ी और गहरी है। इसमें हर समय खारे पानी की व्यवस्था रहती है। जख्मी हुए कछुओं को उपचार केंद्र पहुँचाने वाले या उनका जीवन बचाने वाले लोगो को सम्मानित भी किया जाता है।

कछुओं के जीवन पर बढ़ा खतरा
लोगों में सदा जवान रहने की चाहत का फायदा उठाते हुए तस्करों ने कछुआ की तस्करी करना शुरू कर दिया है। बांग्लादेश, म्यांमार सहित भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में हजारों लोग यह मानते हैं कि कछुआ के मांस से बनी शक्तिवर्धक दवाएं बहुत असरकारी होती है। एक अध्ययन के अनुसार, भारत में हर वर्ष लगभग 11,000 कछुओं की तस्करी की जा रही है। पिछले 10 वर्षों में 110,000 कछुओं का कारोबार किया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, बांधों और बैराज, प्रदूषण, अवैध शिकार, मछली पकड़ने के जाल में फँसने, उनके घोंसले नष्ट होने के खतरों तथा आवास के विखंडन और नुकसान के कारण कछुओं के जीवन पर खतरा बना रहता है।

एक मादा कछुआ ८० से १०० अंडे देता है। इनमे से मात्र २ या ३ प्रतिशत ही आगे चलकर अंडे देने की अवस्था तक जीवित रह पाते है। सालाना करीब ४० कछुओ का इलाज यहां किया जाता है। जख्मी हुए या बीमार कछुओं को स्वस्थ होने तक उपचार केंद्र में रखा जाता है। डॉक्टर इन कछुओं की देखभाल करते है। स्वस्थ होने के बाद कछुओं को सुरक्षित समुंदर में छोड़ दिया जाता है।
डॉक्टर दिनेश जे. विन्हेरकर दहानू
