हेडलाइंस 18
केंद्र और राज्य सरकारें भले ही समृद्धि के तमाम दावे कर रही हो लेकिन, दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से एक आर्थिक राजधानी मुंबई से डेढ़-दो घंटे की दूरी पर स्थित पालघर जिले में भूख और कुपोषण से आदिवासियों के बच्चों की मौतें विकास की पोल खोलने के लिए काफी है। कुपोषण मिटाने को लेकर राज्य व केंद्र सरकार के तमाम अभियान यहां के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में लाचार नजर आ रहे हैं। कुपोषण एक फिर मोखाडा इलाके में अपना कहर बरपा रहा है। यहां 10 दिनों में कुपोषण ने 2 बच्चों की बलि ले ली है।दोनो बच्चे सावर्डे गांव के रहने वाले है और इनके नाम दुर्गा निंबारे और रेणुका मुकने है। बच्चो की मौत के बाद आरोप लग रहे है कि मृतक बच्चो को कुपोषित न दिखे इसके लिए इनके वजन अधिक लिखे गए थे। पालक मंत्री से मामले कार्यवाही की मांग की गई है। इस घटना से आक्रोशित ग्राम पंचायत उपसरपंच, सदस्यों व ग्रामीणों ने गहन जांच कर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। मिली जानकारी के अनुसार दुर्गा कल्पेश निंबारे (11 माह) की तबीयत खराब रहती थी. इसलिए, उसके माता-पिता ने दिसंबर में उसे इलाज के लिए खोडाला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया। तबियत बिगड़ने के बाद उसे उसे
जानकारी सामने आई है किमृतिका दुर्गा निंबारे की दिसंबर माह में आंगनबाड़ी में उपस्थिति के दौरान बच्ची का वजन 9 किलो 100 ग्राम लिखा गया। जिससे यह साबित होता था कि बच्ची कुपोषित नही है। जबकि जब दुर्गा को अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उनका वजन सिर्फ 6 किलो ही था। आरोप है, कि उन्हें बच्ची के कुपोषित और पोषाहार देने संबंधी उन्हे कोई सूचना नहीं दी गई।
हनुमंत पादिर उपसरपंच सावर्डे
दोनो बच्चे बीमार थे उनकी मौत की जांच के आदेश दिए गए है। कुपोषण के खात्मे के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे है।
भानुदास पालवे,मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिला परिषद
