हेडलाइंस 18
किसान खेती-किसानी को मुनाफे वाला काम बनाने की कोशिश में जुट गए है। इसी कड़ी में पालघर जिले के किसान ऐसी फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हो रहे है जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकती हैं।
ऐसे में यहां के विक्रमगढ़,जव्हार जैसे ग्रामीण इलाकों के रहने वाले सैकड़ों आदिवासी किसानों के बीच बांस की खेती का चलन तेजी से बढ़ रहा है। बांस को हरा सोना कहा जाता है। ये भी कहा जाता है कि बंजर से बंजर भूमि को ये बांस की खेती से उपजाऊ बनाया जा सकता है। दूसरी तरफ़ इसकी खेती से अच्छा खासा मुनाफा भी कमाया जा सकता है। जिससे बांस की खेती करने के लिए सैकड़ों किसान आगे आए है। किसानों को बांस की खेती के लिए केशव श्रृष्टि संस्था लगातार प्रोत्साहित कर रही है और खुद भी संस्था जव्हार में १८ एकड़ जमीन में बांस की खेती कर रही है। बांस की बुवाई के बाद आप इससे तकरीबन ४० से ६० साल तक मुनाफा कमा सकते हैं। खेती किसानी में इसे हरा सोना भी माना जाता है। इसके उपयोग से कार्बनिक कपड़े बनाए जाते हैं। इससे कई तरह के प्रोडक्ट भी बनाए जाते हैं। सजावटी सामानों को बनाने में भी बांस का उपयोग किया जाता है। मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक, नगालैंड, त्रिपुरा, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखंड व महाराष्ट्र आदि राज्यों में इसकी खेती बड़े स्तर पर की जाती है।
सैकड़ों किसानों ने शुरू की बांस की खेती विक्रमगढ़ के टेटवाली,चिंचपाड़ा,वाणीपाड़ा, वाकी जैसे २० गांव के किसान अपनी खाली पड़ी जमीनों में बांस की खेती शुरू की है। उन्हे उम्मीद है कि बांस की हरी भरी फसल की तरह उनका जीवन भी हरा भरा हो जायेगा।
बांस की खेती के लिए ऐसे जमीन करते हैं तैयार
इसकी खेती के लिए जमीन तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती है। बस इस बात का ध्यान रखें कि मिट्टी बहुत अधिक रेतीली नहीं होनी चाहिए। आप २ फीट गहरा और २ फीट चौड़ा गड्ढा खोदकर इसकी रोपाई कर सकते हैं। साथ ही बांस की रोपाई के समय गोबर की खाद का प्रयोग कर सकते हैं। रोपाई के तुरंत बाद पौधे को पानी दें और एक महीने तक रोजाना पानी देते रहें। ६ महीने के बाद इसे सप्ताह के सप्ताह पानी दें।
बुवाई से लेकर कटाई तक
बांस को बीज, कटिंग या राइज़ोम से लगाया जा सकता है. इसके बीज अत्यंत दुर्लभ और महंगे होते हैं।पौधे की कीमत बांस के पौधे की किस्म और गुणवत्ता पर भी निर्भर करती है।
प्रति हेक्टेयर इसके करीब १५०० पौधे लगते जा सकते हैं
प्रति पौधे २५० रुपये का खर्च आता है।
बुवाई के ४ साल के बाद इसके पेड़ की कटाई शुरू होती है. १ हेक्टेयर से आपको करीब ४ लाख रुपये तक का मुनाफा होता है। मुनाफे की ये प्रकिया ४० से ६० साल तक लगातार चलती है।
बांस की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही केशव श्रृष्टि संस्था के सह सचिव संतोष गायकवाड़ ने बताया कि बांस का इस्तेमाल घरेलू सामानों को सजाने में भी किया जाता है। यहां की ५०० से ज्यादा आदिवासी महिलाओं को बांस के सामान बनाने से रोजगार मिला है। असम,मेघालय जैसे राज्यों में होने वाली बांस की विशेष प्रजातियों की खेती भी पालघर के आदिवासी कर रहे है।
खाली पड़ी जमीन में बांस की खेती शुरू की है। शुरुवात में २०० पौधे रोपे है। हमे बताया गया है, कि बांस से आर्गेनिक कपड़े और कई तरह के उत्पाद भी बनाए जाते हैं। जिससे किसान बांस की खेती के लिए प्रोत्साहित हो रहे है।यूट्यूब से खेती करने के बारे में और जानकारी मिली है।
नामदेव भुरकुड,किसान – विक्रमगढ़
