बोईसर-तारापुर औद्योगिक क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण,पॉल्यूशन लेवल के मामले महाराष्ट्र पहुंचा संवेदनशील कैटेगरी में,काबू नही हुआ तो 2023 तक बिगड़ सकते है हालात

by | Nov 10, 2022 | पालघर, महाराष्ट्र

एरोसोल पॉल्यूशन लेवल के मामले में महाराष्ट्र इस वक्त संवेदनशील कैटेगरी में है. अनुमान है कि 2023 में यह स्तर अति संवेदनशील की श्रेणी में पहुंच सकता है.

राजेन्द्र एम. छीपा

पालघर : जिले के बोईसर तारापुर औद्योगिक क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण की चिंता तो सभी को है पर उसके लिए चिंतन करने के लिए सम्बंधित विभाग को फुर्सत तक नही है व न ही इस पर गंभीर है ।

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से सटे पालघर जिले में स्थित तारापुर परमाणु घर जो कि देश के लिए अहम है पर उसी तारापुर के एमआईडीसी (MIDC) में बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय है । जो इस पूरे क्षेत्र के लिए खतरा बन सकता है ।
तारापुर औद्योगिक क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण को लेकर एनजीटी ने भी कई बार चिंता व्यक्त की है । एक 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक देश की 100 औद्योगिक क्षेत्रो की जांच में तारापुर औद्योगिक क्षेत्र प्रदूषण के मामले में सबसे ऊपर था । पर उस रिपोर्ट के बाद भी यह गम्भीर मुद्दा सिर्फ कुछ दिन अखबार की सुर्खियां बनकर रह गया पर क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सम्बंधित विभाग ने कोई ठोस कदम नही उठाये । तारापुर MIDC का बढ़ता प्रदूषण आसपास के क्षेत्र में जनजीवन के स्वास्थ्य पर तो असर डालेगा ही साथ मे ग्लोबल वार्मिंग से पैदा होने वाले भविष्य में खतरे की आशंका को भी टाला नही जा सकता ।

यहां तक कि एनजीटी ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम (पीएमएलए) की रोकथाम के प्रावधानों के तहत प्रदूषणकारी उद्योगों की जांच करने के लिए भी कहा था,पर ऐसा कुछ हुआ नही,कुछ महीने पूर्व नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (NGT) ने तारापुर एमआईडीसी क्षेत्र की लगभग सौ औद्योगिक इकाइयों को 186 करोड़ रुपये मुआवजा अदा करने का आदेश दिया था। औद्योगिक इकाइयों की ओर से छोड़ी जाने वाली गंदगी से आसपास की नदियां-तालाब आदि काफी प्रदूषित हुए हैं व अब भी हो ही रहे है । एनजीटी ने इन इकाइयों पर यह हर्जाना पर्यावरण मुआवजे के तौर पर लगाया था। एनजीटी ने 24 जनवरी को जारी अपने आदेश में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को भी फटकार लगाई और कहा कि जलाशयों में प्रदूषण कारक तत्व छोड़ने के अपराध के बावजूद एजेंसी ने मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत औद्योगिक इकाइयों पर कार्रवाई नहीं की।
एनजीटी ने कहा था कि कार्रवाई नहीं किए जाने से इकाइयों को कानून का उल्लंघन करने का प्रोत्साहन मिला। एनजीटी ने कहा कि ईडी मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत सीमित दायरे में कार्रवाई कर रही थी जबकि 2013 के संशोधन के बाद इस कानून का दायरा बढ़ गया है। महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) के अधिकारियों को लापरवाही के लिए फटकार लगाते हुए एनजीटी ने कहा कि महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) ने भी पाइपलाइन की नियमित सफाई नहीं की जिससे प्रदूषण में इजाफा हुआ। इन सभी के बावजूद किसी को कुछ फर्क नही पड़ा,जैसा उस वक्त जारी था ऐसा आज भी बेधड़क कोई वायु को तो कोई जल को दूषित करने में कोई कसर नही छोड़ रहे है ।

प्रदूषण के मामले में महाराष्ट्र भी पहुंचा संवेदनशील कैटेगरी में

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एरोसोल पॉल्यूशन लेवल के मामले में महाराष्ट्र इस वक्त संवेदनशील कैटेगरी में है. अनुमान है कि 2023 में यह स्तर अति संवेदनशील की श्रेणी में पहुंच सकता है.
यह दावा एक स्टडी में किया गया. कोलकाता स्थित बोस इंस्टिट्यूट में असोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिजीत चटर्जी और उनकी पीएचडी स्कॉलर मोनामी दत्ता ने यह स्टडी की. डॉ. चटर्जी भारत में राज्यवार एरोसोल प्रदूषण पर गहन रिसर्च कर चुके हैं. उन्होंने 2005 से 2019 तक के ट्रेंड, अलग-अलग स्रोत और भविष्य के हालात (2023) का हवाला देते हुए राष्ट्रीय परिदृश्य पेश किया.
एरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (AOD) से वातावरण में मौजूद प्रदूषण की स्थिति का आंकलन किया जाता है. एरोसेल का बढ़ना खतरनाक माना जाता है.महाराष्ट्र इस वक्त ऑरेंज कैटेगिरी में है, जो 0.4-0.5 एओडी के साथ संवेदनशील क्षेत्र है. हालांकि, लगातार बढ़ रहे एरोसोल प्रदूषण की वजह से एओडी 0.5 से ज्यादा हो सकता है, जिससे राज्य अति संवेदनशील (रेड) जोन में एंट्री कर सकता है. हाई एरोसोल में समुद्री नमक, धूल, सल्फेट, काला और ऑर्गेनिक कार्बन के पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और पीएम10) शामिल होते हैं. अगर ऐसे माहौल में सांस ली जाए तो इससे लोगों की सेहत को नुकसान पहुंच सकता है.

महाराष्ट्र में बढ़ते वायु प्रदूषण मुख्य वजह

स्टडी के मुताबिक, महाराष्ट्र में एरोसोल प्रदूषण के मुख्य स्रोतों की पहचान थर्मल पावर प्लांट, ठोस ईंधन जलने और वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के रूप में की गई.इस स्टडी के मुख्य लेखक और बोस इंस्टिट्यूट में पर्यावरण विज्ञान के असोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिजीत चटर्जी के अनुसार ‘ महाराष्ट्र में वायु प्रदूषण बढ़ने की मुख्य वजह पहले से मौजूद कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट (TPP) हैं. राज्य में एओडी 0.5 से ज्यादा हो जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप बीमारियों की दर में इजाफा हो सकता है. वहीं, संभावित जीवनकाल में कमी के साथ-साथ लोगों में सेहत संबंधी अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं.’ साथ ही यह बात भी सामने आई की 2019 से 2023 के दौरान महाराष्ट्र में एओडी में करीब सात फीसदी का इजाफा हो सकता है.

महाराष्ट्र को ब्लू सेफ जोन में लेकर जाने का समाधान

इस स्टडी में सिफारिश की गई कि ब्लू सेफ जोन में जाने के लिए महाराष्ट्र को अपनी थर्मल पावर प्लांट की क्षमता को 41 फीसदी (10 गीगावॉट) घटाने की जरूरत है. कोलकाता स्थित बोस इंस्टिट्यूट की सीनियर रिसर्च फेलो मोनामी दत्ता ने बताया, ‘कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट की वजह से महाराष्ट्र काफी ज्यादा प्रभावित है. तीसरे चरण यानी 2015 से 2019 के दौरान वायु प्रदूषण में थर्मल पावर प्लांट का योगदान करीब 39 फीसदी रहा. इस तरह के खतरे पर काबू पाने के लिए राज्य सरकार को न सिर्फ नए थर्मल पावर प्लांट को मंजूरी देने पर रोक लगानी होगी, बल्कि मौजूदा थर्मल पावर प्लांट की क्षमता भी कम से कम 10 गीगावॉट घटाने पर ध्यान देना होगा.

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