देश मे सेना,रेलवे के बाद सबसे बड़ा जमीन मालिक वक्फ बोर्ड,13 वर्षों में जमीन दौगुनी करने वाले वक्फ बोर्ड अगर आपकी जमीन पर दावा करे तो आप उसके खिलाफ कोर्ट भी नही जा पाएंगे….जानिए वक्फ बोर्ड के बारे में

by | Sep 19, 2022 | उत्तर प्रदेश, गुजरात, देश/विदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान

भारत देश में सेना और रेलवे के बाद सबसे बड़ा जमीन मालिक वक्फ बोर्ड है। हैरत की बात है कि जमीन की मिल्कियत दिन दूना रात चौगुना की तेजी से बढ़ रही है। वक्फ बोर्ड के कब्जे की जमीन का रकबा सिर्फ 13 वर्षों में दोगुना से भी ज्यादा हो गया है।
आप देख रहे है इन दिनों वक्फ बोर्ड काफी चर्चा में है। दिल्ली सरकार की एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) ने वक्फ बोर्ड से जुड़े घोटाले के आरोप में ओखला से आम आदमी पार्टी (AAP) विधायक अमानतुल्लाह खान को गिरफ्तार कर लिया है। उधर, तमिलनाडु के एक हिंदू बहुल गांव की करीब 90 प्रतिशत जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया गया है जिसमें 1500 साल पुराना एक मंदिर भी है। सोचिए, दुनिया में इस्लाम के आने से पहले के मंदिर पर भी वक्फ अपनी मिल्कियत ने दावा कर दिया है!

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वक्फ बोर्ड की ऐसी ही विवादित गतिविधियों और उसे मिले विशेषाधिकारों को गैर-संवैधानिक बताते हुए वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर वक्फ बोर्ड है क्या, वह क्या करता है और उसके पास कौन-कौन सी शक्तियां हैं। तो आइए वक्फ बोर्ड के गठन से लेकर उनकी गतिविधियों से आपको अवगत कराते हैं।

13 वर्ष में डबल हो गई वक्फ बोर्ड की जमीन!

वक्फ बोर्ड के पास भारतीय सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन है। यानी, वक्फ बोर्ड देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के मुताबिक, देश के सभी वक्फ बोर्डों के पास कुल मिलाकर 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं जो 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। सेना के पास करीब 18 लाख एकड़ जमीन पर संपत्तियां हैं जबकि रेलवे की चल-अचल संपत्तियां करीब 12 लाख एकड़ में फैली हैं। अब जो आंकड़ा जानने वाले हैं, वो चौंका देगा। साल 2009 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां 4 लाख एकड़ जमीन पर फैली थी। मतलब साफ है कि बीते 13 वर्षों में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां दोगुनी से भी ज्यादा हो गई हैं। आप भी जानते हैं कि जमीन का विस्तार तो नहीं होता। फिर वक्फ बोर्ड के हिस्से जमीन का इतना बड़ा हिस्सा, इतनी तेजी से कैसे जा रहा है? यह हैरान कर देने वाला मामला है ।

आखिर किस प्रकार से बढ़ रहा है वक्फ बोर्ड की जमीन का रकबा?

यह बहुत जगह देखने को मिलेगा वक्फ बोर्ड देशभर में जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है। अवैध मजारों, नई-नई मस्जिदों की भी बाढ़ सी आ रही है। इन मजारों और आसपास की जमीनों पर वक्फ बोर्ड का कब्जा हो जाता है। चूंकि 1995 का वक्फ एक्ट कहता है कि अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन वक्फ की संपत्ति है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं, बल्कि जमीन के असली मालिक की होती है कि वो बताए कि कैसे उसकी जमीन वक्फ की नहीं है। 1995 का कानून यह जरूर कहता है कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन यह तय कैसे होगा कि संपत्ति निजी है? जवाब ऊपर दिया जा चुका है। अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है, सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक दावेदार रहा है। कौन नहीं जानता है कि कई परिवारों के पास जमीन का पुख्ता कागज नहीं होता है। वक्फ बोर्ड इसी का फायदा उठाता है क्योंकि उसे कब्जा जमाने के लिए कोई कागज नहीं देना है। इस प्रकार के एकतरफा कानून का पूरा फायदा उठाता है वफ्फ
बोर्ड ।

कांग्रेस सरकार ने दी असीमित शक्तियां

वर्ष 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं। जिसमे वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। वो कहते हैं कि वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। दरअसल, वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है। वही तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है, कौन सी नहीं। इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन की लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित हुआ।

अगर वफ्फ ने आपकी जमीन पर कब्जा किया तो कोर्ट नही जा सकते?

यह बड़ी बात है कि अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते। आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं। इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं। हालांकि, राज्य की सरकार किस दल की है, इस पर निर्भर करता है कि ट्राइब्यूनल में कौन लोग होंगे। संभव है कि ट्राइब्यूनल में भी सभी के सभी मुस्लिम ही हो जाएं। वैसे भी अक्सर सरकारों की कोशिश यही होती है कि ट्राइब्यूनल का गठन ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों के साथ ही हो। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। दरअसल, वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है। वही तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है, कौन सी नहीं। इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन की लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित हुआ।

अदालत पहुंचा मामला

विशेषाधिकारों को गैर-संवैधानिक बताते हुए वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है।अश्विनी उपाध्याय ने इन्हीं आपत्तियों को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। हालांकि, अब उन्होंने हाई कोर्ट से गुहार लगाई है कि याचिका को सुप्रीम कोर्ट में भेजा जाए।

देश मे कितने वफ्फ बोर्ड

देश में एक सेंट्रल वक्फ बोर्ड और 32 स्टेट बोर्ड हैं। केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सेंट्रल वक्फ बोर्ड का पदेन अध्यक्ष होता है। कहना नहीं होगा कि किसी मुसलमान को ही अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बनाया जाता है। वर्तमान सरकार में मुख्तार अब्बास नकवी इस पद पर थे। उनके हटने के बाद से स्मृति ईरानी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं। वो पारसी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। इस तरह सेंट्रल वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष तो कभी-कभार गैर-मुस्लिम हो सकता है, लेकिन सारे सदस्य मुस्लिम ही होते हैं। यह कानून में सुनिश्चित किया गया है। जहां तक बात स्टेट वक्फ बोर्ड्स की है तो उसके भी सभी सात सदस्य मुसलमान ही होते हैं।

हैरान कर देने वाला मामला,हिन्दू बहुल गांव पर वफ्फ का कब्जा

तमिलनाडु का ताजा मामला ही ले लीजिए। प्रदेश के त्रिची जिले के एक हिंदू बहुल गांव तिरुचेंथुरई को वक्फ बोर्ड ने अपनी मिल्कियत घोषित कर दी है। बोर्ड ने कहा कि इस गांव की पूरी जमीन वक्फ की है जबकि उस गांव में सिर्फ 22 मुस्लिम परिवार हैं जबकि हिंदू आबादी 95 प्रतिशत है। हैरत की बात तो यह है कि वहां के मंदिर पर भी वक्फ की संपत्ति घोषित कर दी गई है। ग्रामीणों का कहना है कि यह मंदिर 15 सौ वर्ष पुरानी है, यानी दुनिया में इस्लाम के आने से पहले से ही। तमिलनाडु का यह मामला वक्फ बोर्ड को मिली असीमित शक्तियों और उसके दुरुपयोग का शानदार उदाहरण है।

जानिए वक्फ प्रॉपर्टी

देशभर में अगर कहीं सबसे ज़्यादा वक्फ प्रॉपर्टी है, तो वो राज्य है यूपी. यूपी में शिया और सुन्नी वक्फ को मिलाकर 1.5 लाख से ज़्यादा वक्फ प्रॉपर्टी हैं. इसमें से 1.42 लाख वक्फ प्रॉपर्टी तो सिर्फ सुन्नी वक्फ बोर्ड की ही है. यह आंकड़ा पंजीकरण वाले पोर्टल का है. इसके साथ ही पश्चिम बंगाल में 80 हजार, कर्नाटक, तमिलनाडू 53-53 हजार, केरल 42, पंजाब 36, तेलंगाना 28, राजस्थान 23, मध्य प्रदेश 24, महाराष्ट्र 20 और हरियाणा में 22 तो गुजरात में 21 हज़ार वक्फ प्रॉपर्टी हैं.

घोटालों का अंबार

देशभर में वक्फ बोर्ड के घपले लगभग एक जैसे हैं. बिल्डर या बिजनेसमैन वक्फ की जमीन की पहचान कर बोर्ड मेंबरों से संपर्क करते हैं. औने-पौने दाम पर जमीन बेच दी जाती है और सदस्यों को उनका हिस्सा मिल जाता है. जिन राज्यों में वक्फ की जमीन आसानी से नहीं बिक पाती है, वहां बेहद आसान लीज पर इन्हें बिल्डरों या कारोबारियों को सौंप दिया जाता है. यहां भी बोर्ड के सदस्यों को उनका हिस्सा मिल जाता है, क्योंकि वे लीज के नियम कुछ इस तरह बना देते हैं ताकि प्रॉपर्टी का आसानी से कमर्शियल उपयोग हो सके. देश में कई इमारतें, होटल, मॉल और फैक्टरियां वक्फ की जमीनों पर खड़ी हैं. या तो बेहद कम कीमत पर ये जमीनें बेच दी गईं या फिर बहुत कम किराए पर मुहैया करा दी गईं. उम्मीद तो यह की जाती है कि वक्फ मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए पैसों का इंतजाम करेगा, लेकिन देशभर के वक्फ बोर्ड में अनियमितता और भ्रष्टाचार की भरमार रही है. इस संस्था में जवाबदेही न के बराबर है ।

वफ्फ बोर्ड व नेताओ की सांठगांठ

देश में जितने वक्फ बोर्ड हैं. किसी भी वक्फ बोर्ड में कम से कम 5 सदस्य होने चाहिए. इन सभी सदस्यों को राज्य सरकारें नॉमिनेट करती हैं. यानी वे ही इस बोर्ड में शामिल होते हैं, जिन्हें उस राज्य की सरकार चाहती है. यानी वे ही इस बोर्ड में शामिल होते हैं, जिन्हें उस राज्य की सरकार चाहती है. इन बोर्ड में वही नेता सदस्य बन पाते हैं, जिन्हें सरकार में जगह नहीं मिल पाई होती है. उनकी नजर हमेशा भूमाफिया या अतिक्रमण करने वालों से सांठगांठ करने पर रहती है. 1995 वक्फ एक्ट के अनुसार सभी बोर्ड का नियमित ऑडिट सर्वे होना चाहिए, लेकिन कई सरकारों ने जानबूझकर ऐसा नहीं कराया.

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