पढ़ना है जरूरी इसलिए रोज है यह मजबूरी। यह कोई स्लोगन नहीं है,बल्कि पालघर के ग्रामीण इलाकों में स्कूल जाने वाले बच्चों की यह कष्ट भरी हकीकत है जो उनकी रोज की जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है। जिले के आदिवासी क्षेत्र जव्हार तालुका की आकरे ग्रामपंचायत स्थित आंबेचापाडा-तासुपाडा में कई गांव के 1 से लेकर 12वी तक के स्कूली बच्चे रोज खतरों के बीच एक तटबंध के सहारे नदी को पार कर स्कूल पहुंचते हैं।
इन बच्चों की मांग है,कि आजादी के अमृत महोत्सव पर एक पुल बनवा कर उनकी समस्या का हल किया जाए।
देश में आज भले ही शिक्षा का अधिकार कानून लागू है। लेकिन पालघर के दूर दराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए शिक्षा हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां के आदिवासी इलाकों में हथेली पर जान रखकर बच्चे कहीं नदी को पार कर स्कूल पहुंचते हैं तो कहीं अस्थाई पुल के सहारे। ग्रामीणों का कहना है,कि बीते कई वर्षों से गांव के बच्चे व आस पास रहने वाले ग्रामीण जान जोखिम में डालकर नदी पार कर अपनी मंजिल तक पहुँचने को मजबूर है।
गौरतलब है कि बरसात के मौसम में जहां जिला प्रशासन नदी-नालों में जाने पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगाता है, वहीं पालघर के आदिवासी बाहुल्य इलाके के लोग इन नियमों की अनदेखी करने को मजबूर हैं और यहां के स्कूली बच्चे जान जोखिम में डालकर बहती हुई नदी पार करके स्कूल जाते हैं और बहुत से अभिभावक कड़ी मशक्कत से बच्चों को नदी पार करवाते हैं। इलाके के विभिन्न गांवों के लोग साल भर अपनी जान जोखिम में डालकर रोजाना इस नदी को पार करते हैं।
जनप्रतिनिधियों को बता चुके हैं समस्या
लोगों का कहना है कि वर्षो से ही इस नदी को पार करने की समस्या से हम ग्रामीण जूझ रहे हैं। इस समस्या को लेकर कई बार जनप्रतिनिधियों को अवगत करा चुके हैं, लेकिन कोई भी जिम्मेदार जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक अधिकारी इस समस्या की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यह सभी जनप्रतिनिधि वोट मांगने आते हैं और फिर हमें हमारे हाल पर छोड़ देते हैं।
जान पर पढ़ाई का जोश भारी
ग्रामीण विजय डोके ने बताया कि बरसात के महीने में तो इस नदी में भारी बहाव होने के कारण बच्चों को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है। और स्कूल जाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। नदी में बहाव बढ़ने पर बच्चे कई-कई दिन स्कूल भी नही जा पाते है। आंबेचापाडा-तासुपाडा से कोतीमाल होकर स्कूल की दूरी करीब 9 किमी है। लेकिन नदी पार करने से इस मार्ग से मात्र डेढ़ किलोमीटर है इसीलिए बच्चे बहती हुई नदी को पार करने को मजबूर हैं। फिलहाल आदिवासियों के बच्चों का पढ़ाई का जोश जान पर भारी दिख रहा है।
खेती उस पर गांव इस पार
ग्रामीणों का कहना है,कि गांव नदी के इस पार है और खेती उस पर जिससे खेती करने के लिए रोजाना नदी पार कर हमें उस पार जाना पड़ता है। लोगों का कहना है,कि नदी में पुल बनने से ग्रामीणों को जान लेवा सफर से मुक्ति मिलेगी।
