आजादी के अमृत महोत्सव पर पालघर की आदिवासी महिलाओं का देश की सीमाओं पर तैनात जवानों को बड़ा तोहफ़ा,बीस हजार सैनिकों की कलाइयों पर सजेगी बांस और केले के रेशे से बनी राखियां।

by | Aug 6, 2022 | देश/विदेश, पालघर, महाराष्ट्र, मुंबई


हेडलाइंस18
देश आजादी का अमृत महोत्सव बड़े धूमधाम के साथ मना रहा है। और इसके सही नायक हमारे सैनिक है। आजाद भारत की सरहदों की रक्षा में दिनरात तैनात हमारे जवान हमें भरोसा देते हैं इस बात का कि फिर कोई हमारी आजादी छीनना तो दूर, इसका प्रयास भी नहीं कर पाएगा। 15 अगस्त का वो दिन नजदीक है जब देश को आजादी मिली।इससे ठीक पहले 11 अगस्त को रक्षा के ऐसे ही भरोसे का पर्व ‘रक्षाबंधन’ भी आएगा, जब बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांध कर अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होंगी। लेकिन जरूरी नहीं कि दूर—दराज में अपने घरों से दूर तैनात हर जवान को अपनी बहन से मिल कर रक्षा सूत्र बंधवाने का मौका मिले। हमारे जवानों के लिए रक्षा और रक्षाबंधन के त्योहारों का यह संगम यादगार रहे, इसीलिए पालघर की आदिवासी महिलाओं ने अपने सैनिक भाइयों के लिए उन्हें यादगार तोहफा भेजा है। केशव सृष्टि संस्था की अगुवाई में करीब 500 आदिवासी महिलाएं इन दिनों बांस और केले के रेशे से राखियां बना रही है। इन महिलाओं ने लद्दाख,जम्मू-कश्मीरसे लेकर राजस्थान तक देश की सीमाओं पर तैनात करीब 20 हजार जवानों को राखियां भेजी है। जो इस रक्षाबंधन उनकी कलाइयों पर सजेगी।

50 हजार राखियां बनाने का लक्ष्य
500 के करीब आदिवासी महिलाओं का तीस-तीस महिलाओं का समूह बनाया गया है। इन महिलाओं का लक्ष्य है कि वह करीब 50 हजार राखियां बनाये। दो राखियों के एक बॉक्स की कीमत करीब 100 रुपये रखी गई है।बांस की ईको फ्रेंडली राखियां बनाई जा रही हैं
इससे लोगों को पर्यावरण के अनुकूल राखियों का विकल्प मिलेगा और बनाने वाली महिलाओं की आमदनी भी बढ़ेगी।

स्वावलंबी बन रही महिलाएं
पालघर के जनजातीय बाहुल्य विक्रमगढ़ और वाड़ा तालुका के करीब 20 गांव की महिलाएं इन दिनों बांस और केले के रेशे से राखियां बना रही है। जिन्हें लोग काफी पसंद कर रहे है। इससे रोजगार के लिए इन क्षेत्रों से होने वाला लोगों का पलायन भी थमता दिख रहा है।केशव सृष्टि संस्था के सह सचिव संतोष गायकवाड़ कहते है,कि इस योजना का मकशद महिलाओं को स्वावलंबी बनाना है।

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