भव्य ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन

by | Dec 24, 2021 | उत्तर प्रदेश

उ.प्र.।जनपद जौनपुर में श्री परशुराम सेवा संस्थान द्वारा आयोजित पूज्य संत व ब्राह्मण महासम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने अपने मुखारविंद से कहा कि भगवान परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहा जन्म हुआ था।वह भगवान विष्णु के अवतार थे।उन्होंने बताया कि पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था । वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं।वह भिन्न-भिन्न नामों से जाने जाते हैं | पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वरदान दिया और शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी और कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त “शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र” भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-“ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नः परशुराम: प्रचोदयात्।” उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है। भगवान परशुराम जी ने सत्ता मद में चूर सहस्त्रार्जुन का वध किया था |
पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य भगवान ने कहा कि जिस प्रकार भगवान परशुराम जी ने तप से शक्ति अर्जित कर समाजद्रोही, मदान्ध आततायियों से समाज को निर्भीक किया, उसी प्रकार ब्राह्मण अपने तपोबल से अपने तथा सभ्य समाज के समक्ष उपस्थित संकटों एवम् समस्याओं का समाधान कर सकता है |
स्वामी बृजभूषणानन्द जी महाराज

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