● मिथिलेश गुप्ता
डोंबिवली :आरटीई अधिनियम में कई खामियां हैं और इसमें भेदभाव भी किया जा रहा है। आरटीई अधिनियम के तहत, सरकार द्वारा स्थायी रूप से बिनाअनुदानित स्कूलों को जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जा रहा है। कुछ लोगों को खुश रखने के लिए बहुत से लोगों के साथ अन्याय किया जा रहा है।
डोंबिवली में राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान, मुंबई के अध्यक्ष और विद्यानिकेतन स्कूल के संस्थापक विवेक पंडित ने शिक्षा विभाग और राज्य सरकार को पत्र लिखकर मांग की है कि आरटीई प्रवेश केवल वित्तीय मानदंडों पर दिया जाना चाहिए और अभिभावकों की वार्षिक कमाई की सीमा एक लाख से बढ़ाकर ढाई करनी चाहिए । उन्होंने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों के लिए वित्तीय जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों के पास है। राज्य सरकार निजी क्षेत्र के लिए वित्तीय संकट पैदा कर रही थी। केंद्र सरकार ने नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 लागू किया था ताकि यह वंचित समूह के छात्रों को शिक्षा से वंचित न रहना पड़े लेकिन यह कानून बिना अनुदानित स्कूलों के लिए नुकसानदायक है । सरकार प्री-प्राइमरी कक्षाओं में बच्चों की शैक्षणिक फीस स्कूलों को भरपाई नहीं करती है। सरकार के पास निधी आता है लेकिन उसका योग्य वितरण नही होता । हम आरटीई अधिनियम में इस खामियों के बारे में विभिन्न स्तरों पर नियामक अधिकारियों को सूचित कर रहे हैं ऐसा पंडित ने बताया साथ ही इस संबंध में स्कूल शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को पत्र लिखा है।