नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी या एनपीपीए ने पेटेंट से बाहर होने वाली दवाओं की कीमतों को घटाकर सीधे 50 फीसदी कर दिया है.
दवा निर्माता कंपनियों द्वारा मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए नियामक संस्था के अनुसार यह कदम उठाया गया है. एनपीपीए की ओर से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि एक साल बाद बाजार के आंकड़ों को ध्यान में रखकर नई कीमत तय की जाएगी. इस कदम से मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां दवाओं के दाम खुद तय नहीं कर पाएंगी.
देश में पेटेंट सुरक्षा खोते ही पेटेंट दवाओं की कीमत आधी हो जाएगी या फिर पेटेंट बंद होने की कगार पर पहुंच जाएगी, जिससे मरीजों को काफी राहत मिलेगी. पेटेंट खोने वाली दवा की कीमत में 50% तक की कमी आ सकती है, और एक साल बाद होलसेल प्राइस इंडेक्स में बदलाव के साथ एमआरपी भी बदल जाएगी. इससे आम लोगों को काफी राहत मिल जाएगी. क्योंकि सरकार ने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर में संशोधन कर दिया है. पेटेंट सुरक्षा खत्म होने के बाद दवाओं की नई कीमते तय की जाएगी.
पेटेंट खत्म होने के बाद हाई क्वालिटी वाले जेनेरिक स्वास्थ्य देखभाल की लागत को कम करने और दवाओं तक पहुंच में सुधार करने में मदद के लिए बाजार में प्रवेश कर सकते हैं. मरीजों के लिए प्रति टैबलेट (दवा) की कीमत कम हो जाती है, और बाजार एक अधिक किफायती इलाज में स्थानांतरित हो जाता है, जो तब रोगियों के एक बड़े समूह को निर्धारित किया जा सकता है. आमतौर पर इनोवेटिव दवाओं के लिए यह एक अधिक मात्रा और हाई डेवलपमेंट वाला मार्केट है.