पालघर|आजादी के 75 सालों में भी नहीं मिली मूलभूत सुविधाएं,गुहार लगाते बूढ़ी हुईं पीढ़ियां,रोजाना डेथ लाइन पर चलने को ग्रामीण मजबूर

by | Mar 10, 2023 | देश/विदेश, पालघर, महाराष्ट्र, मुंबई, वसई विरार

हेडलाइंस 18
देश को आजाद हुए ७५ साल पूरे हो गए हैं। लेकिन अब भी देश में ऐसे कई हिस्से हैं जहां लोगों को नदी पार कर अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए रोजाना जान जोखिम में डालना पड़ता है। पालघर जिले में कई दशकों से ग्रामीणों को ऐसे ही जान खतरे में डालकर नदी पार करनी पड़ती है। यहां करीब ४०० मीटर डेथ लाइन पर रोजाना चलना ग्रामीणों की मजबूरी है। जबकि सड़क मार्ग की मांग करते करते कई पीढ़ियां बूढ़ी हो गई।
विकास के तमाम दावों और इन्फ्रास्ट्रक्चर के सलोने सपनों के बीच वैतीपाड़ा और वाढीव बेटा गांव के लोगों के लिए न तो मंजिल तक पहुंचने के लिए सड़क है न ही नदी पार करने के लिए आज तक पुल नहीं बन सका है। बता दें कि यह दोनो गांव खाड़ी से घिरे है।
देश की पहली चमचमाती बुलेट ट्रेन पालघर से होकर गुजरेगी। लेकिन यहां के क्षेत्र के कई हिस्सों में सड़क बुनियादी ढांचे की लगातार उपेक्षा हो रही है। दशकों से, जिले के वाढीव बेट और वैतीपाड़ा गांवों के लगभग २००० से ज्यादा निवासियों को निकटतम रेलवे स्टेशन तक पहुंचने के लिए पगडंडियों से होकर वैतरणा नदी पर बने रेलवे पुल को पार कर रोजाना जाना पड़ता है।
इसी तरह सफाले की और जाने के लिए भी रेलवे ब्रिज और रेल ट्रैक से उन्हे जाना पड़ता है। क्योंकि ग्रामीणों के लिए अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए अन्य कोई रास्ता नहीं है। रेलवे पुल पर पटरियों को पार करने का प्रयास करते समय अब कई ग्रामीणों की मौत भी हो चुकी है।ग्रामीण होने वाली दुर्घटनाओ को रोकने के लिए बेहतर सड़क संपर्क और एक फुट-ओवर ब्रिज की मांग कई वर्षों से करते आ रहे हैं, लेकिन अभी तक उनकी सुनवाई नहीं हुई है। यह दोनो गांव शहरी क्षेत्रों से कुछ किमी की पर ही है। लेकिन ये पूरा क्षेत्र ही बुनियादी सेवाओं समेत विकास कार्यों से अछूता है। ग्रामीणों की मांग को लेकर न तो सरकार ने ध्यान दिया और न ही इस क्षेत्र से चुन कर विधानसभा और लोकसभा पहुंचने वाले जनप्रतिनिधियों ने। ऐसे में रोज ग्रामीणों को वैतरणा नदी पर बने रेलवे पुल के रेल ट्रैक के बीच से गुजरना पड़ता है। नदी को पार करने का ग्रामीणों के पास यही अकेला जरिया है।

मरीजों को कंधे पर ले जाना पड़ता है अस्पताल

छात्र-छात्राओं को भी स्कूल-कालेज जाने के लिए रेल ट्रैक के बीच से नदी के इसी रेल पुल से गुजरना होता है। सड़क नहीं होने की वजह से अगर किसी शख्स को बीमार पड़ने पर अस्पताल ले जाने की जरूरत होती है तो भी ग्रामीणों को काफी दिक्कत झेलनी पड़ती है और वह उसे कंधे पर लेकर जाते है।

ग्रामीण छोड़ रहे गांव

एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा, ‘बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है, लेकिन वर्षो से लगातार मांग किए जाने के बाद भी ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं तक नसीब नही हो सकी है। एक युवक ने कहा कि लोगों को अपने आने वाले पीढ़ियों की भविष्य की चिंता है ऐसे में वह मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गांव छोड़कर शहरों के बस रहे है। चुनाव के वक्त राजनीतिक दल तमाम वादे करते हैं लेकिन गांव वालों की समस्या दूर नहीं हो सकी। कई ऐसे लोग है जिनके अपनो की जान ब्रिज पर दुर्घटनाओं में चल गई और कुछ लोग ट्रेन से बचने में नदी के गिर गए। लेकिन वह अभी भी उन्हीं पटरियों के बीच चलकर दहानू विरार की ओर जाने के लिए लोकल ट्रेन पकड़ते है। लोगों का कहना है कि वह मजबूर है क्योंकि उन्हें अपने परिवार की परवरिश करनी है।

रेलवे ब्रिज ही गांव से वैतरणा और सफाले रेलवे स्टेशनों तक पहुंचने के लिए एक मात्र विकल्प है। इस पर हुए हादसों में अब तक कई लोगों की जान गई है। ग्रामीण वर्षो से वैतरणा स्टेशन तक पहुंचने के लिए एक फुट ओवरब्रिज और सड़क की मांग कर रहे हैं। हम अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए आने-जाने के लिए रोजाना अपनी जान जोखिम में डालते हैं।

सतीश गावड़ ग्रामीण

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