हेडलाइंस 18
देश के समग्र विकास के लिए परियोजनाओं की आवश्यकता है, इस भावना को ध्यान में रखते हुए पालघर के हजारों किसानों और आदिवासियों ने अपनी उपजाऊ खेत और घर का मोह छोड़ दिया। इसी तरह, किसानों के अलावा बड़ी संख्या में समुद्री किनारे मछलियां पकड़ने वाले मछुआरों ने अपनी आजीविका से समझौता करते हुए विस्थापन को स्वीकार किया। लेकिन, कई वर्षो बाद भी केंद्र और राज्य सरकार द्वारा प्रभावितों को फिर से बसाने के लिए किए गए वादे पूरे नहीं हुए हैं। जिससे देश के विकास के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले लोग आज भी दर दर की ठोकर खाने को मजबूर है। ऐसे में सब कुछ लुटाने वाले आदिवासी,किसानो और मछुआरों को कब न्याय मिलेगा यह एक बड़ा सवाल है।
पालघर जिले में किसी भी परियोजना के प्रभावितों को नही मिला न्याय
पालघर जिले में सिंचाई परियोजना सहित कई परियोजना जिले में आई लेकिन एक भी परियोजना में प्रभावित लोगों को न्याय नहीं मिला जिससे आज वह दर दर की ठोकर खाने को मजबूर है। लोगों की बार बार मांग के बाद भी सरकार और उसके अधिकारियों की कुंभकर्णी नींद नही टूटी जिसके बाद जिजाऊ शैक्षणिक सामाजिक संस्था के अध्यक्ष नीलेश सांबरे ने अपने समर्थकों सहित जिलाधिकारी कार्यालय के सामने आमरण अनशन शुरू कर दिया है। अनशनकारियों का आरोप है, कि मामला बढ़ने पर सिर्फ जिलाधिकारी कार्यालय में बैठकर दिक्कतों को दूर करने का आश्वाशन अधिकारियों द्वारा दिया जाता है। जबकि अधिकारी अपना भ्रष्ट्रचार छिपाने के लिए परियोजना परिभावितो की समस्याओं पर पर्दा डालने में लगे है।

जिले में लेंडी लघु सिंचाई परियोजना,खड़खड़ बांध परियोजना,जय सागर बांध परियोजना, मोखाड़ा में वाघ लघु सिंचाई परियोजना, विक्रमगढ़ में देहर्जे परियोजना,कवडास उज्जैन बांध,सूर्या परियोजना सहित कई परियोजनाओं में प्रभावित हुए हजारों लोगों का समुचित पुनर्वास नहीं किया गया है। जिससे परियोजना पीड़ित अपने को ठगा महसूस कर रहे है। लोगों को खेतो की सिंचाई के लिए पानी मिलेगा और पेयजल की दिक्कत दूर होगी। इसलिए स्थानीय लोगों ने परियोजना के लिए अपनी जमीनें दी। लेकिन आज भी उनके खेत सूखे पड़े है और पेयजल के लिए उन्हें घर से काफी दूर तक भटकना पड़ता है। अनशन स्थल पर हजारों की संख्या में लोग जमा थे। लोगों ने सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। उनका कहना था कि या तो हमारी मांगे पूरी करो या तो कुर्सी छोड़ दो।
लोगों को सुंदर सपना दिखाकर उनका घर जमीन,रोजगार सब कुछ छीन लिया गया। और जिन गांव में उन्हे लाकर बसाया गया। वहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। विस्थापितो को मिली जमीन आज तक लोगों के नाम पर दर्ज नहीं हुई। वर्षो बाद भी परियोजना प्रभावितों को न्याय नही मिला है। मांग पूरी होने और भ्रष्ट्रचारी अधिकारियों पर केस दर्ज होने तक आमरण अनशन जारी रहेगा।
नीलेश सांबरे,अध्यक्ष जिजाऊ शैक्षणिक सामाजिक संस्था