बीमार बिस्तर पर स्वास्थ्य सेवा, लेकिन किसे परवाह?पालघर के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और स्वास्थकर्मियो के आधे से ज्यादा पद खाली पड़े होने से दम तोड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था,पढ़े हेडलाइंस 18 की ग्राउंड रिपोर्ट

by | Jan 31, 2023 | ठाणे, देश/विदेश, पालघर, महाराष्ट्र, मुंबई, वसई विरार

हेडलाइंस 18


चिकित्सा अधिकारियों के १२ पद स्वीकृत है। जिनमे से ८ खाली पड़े है।

पालघर के जिला बनने के आठ साल बाद भी ज्यादातर सरकारी अस्पताल खुद ही है बीमार

९ ग्रामीण अस्पताल और ३ उपजिला अस्पताल पर १० लाख के करीब लोगों का भार

पालघर में मरीज़ों को सही समय पर एम्बुलेंस न मिलने, उचित उपचार की कमी, डॉक्टरों की सीमित उपलब्धता कई और कारणों के चलते अब तक कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। लेकिन इसके बावजूद भी जिले की की स्थापना के ८ सालों के बाद भी पालघर जिले के सरकारी अस्पताल बीमार है।
पालघर के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं के खस्ताहाल के चलते मरीज़ों खासकर आदिवासियों को इलाज के लिए किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है इसे समाजसेवी कृष्णा दुबे उदाहरण से समझते हैं। वह कहते है, कि आदिवासी बाहुल्य कई गांवों की हजारों की आबादी के लिए मुश्किल से मात्र एक -एक स्वास्थ्य केंद्र है। इन स्वास्थ्य केंद्रों में सामान्य सर्दी, बुखार का इलाज तो मिल जाता है लेकिन आज के समय की सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे एक्सरे और अल्ट्रासॉउन्ड की यहां कोई व्यवस्था नहीं हैं। इन स्वास्थ्य केंद्रों में लम्बे समय से कई स्वास्थ्य कर्मियों के पद भी खाली है। यहां के अधिकतर मामलों में मरीजों को गुजरात,सिलवासा और मुंबई, ठाणे नासिक के अस्पतालों में जाना पड़ता है। कई स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव के लिए जो कमरा है सीलन से वह बदहाल है। साफ सफाई की ठीक से व्यवस्था न होने से प्रसव के लिए आयी महिलाओं को इस केंद्र में संक्रमण का खतरा बना रहता है। लोग जब इसकी शिकायत करते है तो स्वास्थ्य कर्मियों का एक ही जवाब होता है, कि उन्होंने इसके संबंध में उच्च अधिकारियों को इससे अवगत करा दिया है। सरकारी अस्पतालों की हालत लगातार खराब होती दिख रही है। जिससे लोग निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर है जहां उन्हें इलाज के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ती है। पालघर जिले में दुर्घटना में घायल और अन्य मामलो में एंबुलेंस न मिलने से भी कई लोगों की जान गई है।

जर्जर सड़कें और एम्बुलेंस व्यवस्था

आदिवासी बाहुल्य मोखाडा,जव्हार,दहानू,विक्रमगढ़,तलासरी जैसे इलाकों में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ खस्ताहाल सड़कों की मार भी गांव में रहने वाले आदिवासियों पर पड़ती है। कई ऐसे गांव है जहां बारिश के कारण सड़क के टूट जाने और नदियों नालों में पानी बढ़ने से महिलाओं को कई दिनों तक प्रसव पीड़ा को झेलती पड़ती है। ग्रामीण गर्भवती महिला और जख्मियों को डोली के सहारे आपदा में ध्वस्त और बदहाल रास्तों पर कई किमी चलकर अस्पताल पहुंचते है। लेकिन वहां की बदहाल व्यवस्था उन्हे इलाज तक नही दे पाती। गांवों से अस्पतालो की दूरी के चलते इन इलाकों में एम्बुलेंस व्यवस्था और सड़कों का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। लेकिन, अधिकतर यह पाया जाता है कि ख़राब सड़कों और एम्बुलेंस की कमी के चलते मरीज समय पर अस्पताल भी नहीं पहुँच पाते हैं। बीते वर्ष मोखाडा तालुका के मर्कटवाड़ी गांव की रहने वाली वंदना बुधर ने 2 जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। समय से पहले बच्चो का जन्म होने से महिला और उसके बच्चों की हालत काफी खराब हो गई।महिला और उसके बच्चो को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस सेवा 108 को फोन किया गया लेकिन गांव को जोड़ने वाली सड़क नहीं होने के कारण एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकी। जिससे एक डोली के सहारे वंदना के परिवार ने खतरनाक रास्तो से होकर करीब तीन किमी चलकर उसे अस्पताल लेकर पहुँचे लेकिन तब काफी देर हो चुकी थी। अत्यधिक रक्तस्राव होने के कारण वंदना की हालत काफी बिगड़ गई और समय पर इलाज न मिलने के कारण उसके दोनों जुड़ुआ बच्चो की मौत हो गई। इसी तरह अब तक कितने ही लोग असमय ही काल के गाल में समा गए। आदिवासियों का कहना है, कि यदि स्थानीय स्तर पर सरकारी अस्पतालों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ होती तो अब तक कई बच्चो और महिलाओं की जान तो बच ही जाती। साथ ही लोगों को इलाज के लिए दर दर ठोकरे भी न खानी पड़ती।

रिश्तेदारों के घर जाती हैं प्रसव के लिए महिलाएं

बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं न होने के कारण यहां के आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाली गर्भवती महिलाएं प्रसव की तारीख नजदीक आने पर अपने उन रिश्तेदारों के यहां रहने चली जाती हैं, जिनका घर अस्पताल से नजदीक होता है।ताकि समय आने पर उसको उचित सुविधा मिल सके। यहाँ के अस्पतालों में यदि शिद्दत के साथ कोई काम होता है तो वह है मरीजों को रेफर करना।

डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की कमी

पालघर में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर सरकार की गंभीरता का अंदाजा स्वास्थ्य विभाग के रिक्त पदों से लगाया जा सकता है। जिले का गठन हुए ८ साल हो चुके हैं लेकिन आज भी यहां रहने वाले लोग छोटी-छोटी बिमारियों के ईलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर हैं। दहानू के उप जिला अस्पताल में रेडियो लाजिस्ट डॉक्टर न होने से सोनो ग्राफी की मशीन धूल फांक रही है। गर्भवती महिलाओं को प्राइवेट में सोनो ग्राफी करवानी पड़ती है। जिससे एक महिला को प्रसव से पहले करीब ६ से ७ हजार रुपए खर्च करने पड़ते है। इसी तरह वानगांव के ग्रामीण अस्पताल में एक्सरे मशीन तो है,लेकिन टेकनेसियन न होने से मशीन अस्पताल के एक कोने में पड़ी है।

९ ग्रामीण अस्पताल और ३ उपजिला अस्पताल के आधे से ज्यादा पड़े खाली

जिले के स्वास्थ्य विभाग में ३० राजपत्रित पद स्वीकृत है। जिनमे से १९ पद खाली है।

ब श्रेणी के ३३ डॉक्टर के पद स्वीकृत है जिनमे से २२ खाली है

डॉक्टर के ९२ में से ४३ पद खाली पड़े है।

डेंटल डॉक्टर के स्वीकृत १४ में से ११ पद खाली पड़े है।

इसी तरह तीसरी श्रेणी के स्टॉप नर्स,लैब,एक्सरे टेकनेशियन आदि के लिए ३७९ पद स्वीकृत है। इनमे से १५० पद खाली पड़े है। चतुर्थ श्रेणी के लिए १३७ पद स्वीकृत है। जिनमे से ९९ खाली पड़े है। सिविल सर्जन कार्यालय में स्वीकृत ३३३ पद में से १० ही भरे गए है।

अस्पतालो में व्यवस्था बनाए रखने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के १२ पद स्वीकृत है। जिनमे से ८ खाली है।प्रत्येक अस्पतालो में विशेषज्ञ (सर्जन, प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ और चिकित्सा विशेषज्ञ) होने चाहिए।

लाचार मरीजों से कमीशन का कनेक्शन

मरीज को देखने के लिए डॉक्टर पहुंचते हैं? आते ही ऐसी दवा लिखते हैं, जो बाहर मिलती है। सरकारी अस्पतालों में जांच न होने से लोगों को बाहर से करवाने के लिए कहा जाता है।सबका कमीशन बंधा हुआ है। ये खेल बहुत बड़ा है और इसमें डॉक्टर के साथ अस्पताल के स्टॉफ भी शामिल होते हैं। एक मरीज पार्वती ने कहा कि कुछ दवाइयां मिल जाती है लेकिन बाकी दवाइयां बाहर से लेनी पड़ती है।

जिला अस्पताल के निर्माण का कार्य शुरू है। जिसके बाद स्वीकृत पद भरे जायेंगे। डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों के खाली पदों की वजह से अस्पतालो पर अतिरिक्त भार है। लोगों को बेहतर सुविधा देने के लगातार प्रयास किए जा रहे है।

संजय बोदाडे, सिविल सर्जन पालघर

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