लेखक – राजेन्द्र एम. छीपा
राजस्थान में रविवार रात को जयपुर में खूब पॉलिटिकल ड्रामो ने भुसाल ला दिया. शाम तक यही चर्चा चल रही थी कि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को सीएम बनाने पर राजी है, लेकिन आलाकमान और राजस्थान के गहलोत ने खेले खेल के बाद लगभग 92 विधायकों की सोच में काफी फर्क नजर आया. सीएलपी की बैठक बुलाई गई, जिसे रद्द करना पड़ा और खबर है कि 92 विधायक गहलोत के समर्थन में इस्तीफा भी दे चुके हैं. अब इस पूरे घटनाक्रम के पीछे अशोक गहलोत का ही हाथ माना जा रहा है. ऐसे में यहां से समझना बेहद जरूरी हो जाता है कि अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के साथ जो खेल खेला है कहीं वो उन्हीं पर ही भारी न पड़ जाए…खुद ही अपने जाल में फंसते दिख रहे है गहलोत !
इस पूरे खेल को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि कांग्रेस आलाकमान उदयुपर संकल्प के तहत ‘एक व्यक्ति और एक पद’ पर सहमति जता चुका है. बीच-बीच में कांग्रेस कार्यकर्ता भी हाईकमान को ये बात याद दिलाते रहते हैं, लेकिन अशोक गहलोत के मन में तो कुछ और ही था. सबसे पहले एक व्यक्ति और दो को लेकर गहलोत इधर-उधर की बात करते रहे और आखिर में राहुल गांधी के सख्त रवैये के बाद जाकर उनके सुर बदले, लेकिन गहलोत इतनी जल्दी हार तो नहीं मानने वाले थे. उन्होंने पिछले दरवाजे से समर्थकों के जरिए कांग्रेस पर दोनों पद पर बने रहने के लिए दबाव बनवाया. यही सारा खेल राजस्थान में रविवार रात को चल रहा था.
रविवार की रात जो कुछ भी हुआ वे कांग्रेस के लिए किसी एक बुरे सपने से कम नही था.यह बात तो साफ है कि अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को सिर्फ नीचा दिखाने के लिए ही राजस्थान की कांग्रेस सरकार को दांव पर लगा दिया. वे कांग्रेस अध्यक्ष तो बनना चाहते हैं, लेकिन सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हरगिज नहीं देखना चाहते है.
इस ड्रामे से देशभर में कांग्रेस पार्टी की जमकर किरकिरी हुई है । कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है, लेकिन अशोक गहलोत ने पहले ही सारा खेल रचा और देशभर में पार्टी की फजीहत करवा दी. हालांकि, गहलोत यह बात कह चुके हैं कि अब उनके बस में कुछ नहीं है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इस घटनाक्रम के लिए गहलोत को ही जिम्मेदार माना जा रहा है. अगर देखने जाए तो इसका सीधा फायदा बीजेपी उठा सकती है. कांग्रेस में अंदरूनी कलह को देखते हुए बीजेपी कोई न कोई रणनीति जरूर बना रही होगी,कुलमिलाकर देखने जाए तो यह समझो कि पायलट से नाराजगी के चलते गहलोत ने खुद ही बड़ा संकट खड़ा कर दिया है जिसमे सरकार जा भी सकती है,अध्यक्ष पद भी हाथ से जा सकता है व अगर किसी अपने चहेते को बनाकर सरकार बरकरार रखी तो यह भी सोच लो कि फिर पायलट मूकदर्शक बनकर नही बैठेंगे ।
गहलोत समर्थकों ने पूरे प्लानिंग से विधायक दल की मीटिंग के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन के जयपुर पहुंचने से पहले ही पूरा खाका बना लिया था. गहलोत समर्थकों को लग रहा था कि पायलट को सीएम बनाया जा सकता है. राजस्थान में जिस तरह से घटनाक्रम चला है उससे स्पष्ट है कि गहलोत अगर सीएम पद छोड़ते हैं और पायलट को सीएम पद सौंपा जाता है तो राज्य में पार्टी की सरकार जाना तय है. अगर गहलोत समर्थकों को पायलट मंजूर नही तो फिर पायलट खुद की बेज्जती करवा कर कितने दिन कांग्रेस के साथ रहते है इस ब्रेकिंग के लिए हमे इंतजार करना होगा ।
अब तो कांग्रेस आलाकमान गांधी परिवार के सामने भी यह सवाल है कि क्या वह अशोक गहलोत पर भरोसा किया जा सकता है? जिस तरह से उन्होंने सोनिया और राहुल गांधी को असमंजस में डाल दिया है, ऐसे में तो खुद गांधी परिवार उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद पर देखना नहीं चाहेगा.अगर सोच लो कि पार्टी आलाकमान अभी के लिए गहलोत की सभी शर्तें मान भी ले, लेकिन राजस्थान में जो खेल गहलोत ने खेला व गांधी परिवार के भरोसे से खिलवाड़ की कीमत आज नही तो कल चुकानी पड़ सकती है ।
एक सवाल अब यह भी उठ रहा है कि क्या ऐसे हालात में गहलोत का अध्यक्ष पद के लिए नामांकन होगा? मौजूदा स्थिति का विश्लेषण करें तो साफ दिखाई दे रहा है कि गहलोत अध्यक्ष पद को लेकर उत्साहित नहीं हैं. अब इसके पीछे भी कई कारण हैं. मौजूदा दौर में गांधी परिवार जिस प्रकार से अध्यक्ष पद से दूरी बना रहा है, उससे स्पष्ट है कि वह हार की जिम्मेदारी के लिए कोई और चेहरा खोज रहा है. जिस प्रकार से कांग्रेस हार रही है, ऐसे में गहलोत के अध्यक्ष बनने पर पूरी जिम्मेदारी उनके खाते में जाएगी.उन्हें भी कही न कही लग रहा है कि शीर्ष नेतृत्व एक मोहरा खोज रही है यही एक कारण भी है कि अध्यक्ष बनने पर गहलोत को गांधी परिवार की मौजूदगी का पूरा एहसास हर वक्त रहता. जाहिर है कांग्रेस अध्यक्ष बिना सोनिया और राहुल के कोई निर्णय नहीं ले पाता. गहलोत खुद को ऐसी स्थिति में नहीं डालना चाहते हैं.
पर जादूगर ने खेले इस खेल में खुद,राजस्थान सरकार व कांग्रेस पार्टी तीनो को संकट में डाल दिया है । अगर अध्यक्ष बनते है तो भी वो वाला मान सम्मान व भरोसा खो लिया,अगर नही बनते व मुख्यमंत्री ही रहते है तो अब सचिन की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है व अगर किसी और को मुख्यमंत्री बनाया तो फिर पायलट भी बेटिंग किये बगैर रहेंगे नही ।
नोट : इस लेख में लेखक का खुद का विश्लेषण है । आप इनके विचारों से सहमत/असहमत हो सकते है ।